
लखीमपुर खीरी के निघासन तहसील के गांव रण्डुवा में गुरुवार को ऐसा सीन देखने को मिला जो किसी बॉलीवुड फिल्म से कम नहीं था। हर तरफ बाढ़ का पानी, रास्ते सब बंद, लेकिन ज़िंदगी कहां रुकती है? संजय निषाद की पत्नी शीला को अचानक प्रसव पीड़ा हुई और परिवार की सांसें अटक गईं।
“लेखपाल साहब ट्रैक्टर लिए आ रहे हैं!”
जब सभी दरवाज़े बंद लगे, प्रशासन ने वह कर दिखाया जो आम तौर पर फिल्मों में होता है। क्षेत्रीय लेखपाल श्याम नंदन मिश्र खुद ट्रैक्टर-ट्रॉली लेकर मौके पर पहुंचे। हां, आप सही पढ़ रहे हैं – ट्रैक्टर ट्रॉली!
ग्रामीणों की मदद से शीला को चारपाई पर लिटाया गया और बाढ़ के पानी से गुजरते हुए ट्रॉली में लादकर बंधे की ओर निकल पड़े।
50 मीटर की दूरी, और आई ‘LIFE की ENTRY’
बंधे से बस 50 मीटर दूर ही शीला की पीड़ा असहनीय हो गई। एंबुलेंस दूर थी, डॉक्टर और हॉस्पिटल का तो सवाल ही नहीं।
फिर जो हुआ, वो इंसानियत की मिसाल है – कपड़ों और तिरपाल से बना अस्थायी डिलीवरी रूम और वहीं, खेत के बीचोंबीच हुआ एक सुरक्षित प्रसव।
किलकारी और आंसू – बाढ़ में भी बहता इमोशन
नवजात की पहली किलकारी सुनते ही वहां मौजूद हर आंख नम थी। किसी ने मोबाइल से वीडियो बनाया, कोई ऊपर देख धन्यवाद दे रहा था।
ये सिर्फ एक डिलीवरी नहीं थी, ये उम्मीद की जीत थी।

जच्चा-बच्चा सुरक्षित, प्रशासन को सैल्यूट
प्रसव के बाद शीला और नवजात को बंधे तक लाया गया, वहां से एंबुलेंस के जरिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र फूलबेहड़ भेजा गया। एसडीएम राजीव कुमार निगम और डॉक्टरों की टीम ने मां-बच्चे को पूरी तरह स्वस्थ बताया।
“ऐसी सरकार मिले तो डर किस बात का?” – बोले ग्रामीण
डीएम दुर्गा शक्ति नागपाल के निर्देश पर हुई इस रेस्क्यू-ऑपरेशन की चर्चा अब गांव से निकलकर सोशल मीडिया तक पहुंच गई है।
संजय निषाद बोले – “हम तो हार मान चुके थे, लेकिन ये मदद कभी नहीं भूलेंगे।”
लालू जी कहिन-“गुजराती लोग बिहारियों को इतने हल्के में न लें। ये बिहार है।”